प्रयाग प्रशस्ति: सम्राट समुद्रगुप्त के गौरव का प्रतीक

समुद्रगुप्त

प्रयाग प्रशस्ति भारत के महान गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त द्वारा अपने पराक्रम और विजय अभियान के विवरण को दर्ज करने वाला ऐतिहासिक लेख है। यह लेख उनके दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित था और प्रयागराज में स्थित अशोक स्तंभ पर अंकित है। यह लेख केवल समुद्रगुप्त की विजयों का विवरण ही नहीं देता, बल्कि उनके शासनकाल की प्रशासनिक व्यवस्था, उनकी राजनीतिक नीति और उनके व्यक्तित्व का भी बखान करता है।

प्रयाग प्रशस्ति को भारतीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण स्त्रोत माना जाता है, जो गुप्त काल की समृद्धि और समुद्रगुप्त के नेतृत्व में भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक विस्तार को दर्शाता है।

प्रयाग प्रशस्ति का ऐतिहासिक महत्त्व

सम्राट समुद्रगुप्त का शासनकाल 350 से 375 ईस्वी के बीच था। हरिषेण ने समुद्रगुप्त की महानता को दर्शाते हुए इस प्रशस्ति की रचना की, जिसे कौशाम्बी से लाए गए अशोक स्तंभ पर खुदवाया गया। यह प्रशस्ति बताती है कि समुद्रगुप्त ने उत्तर भारत के 9 प्रमुख शासकों को पराजित कर अपनी सत्ता स्थापित की और गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया।

प्रशस्ति का स्थान और महत्व

यह स्तंभ मूल रूप से मौर्य शासक अशोक के समय का था, जिसे समुद्रगुप्त ने कौशाम्बी से लाकर प्रयाग में स्थापित किया। समुद्रगुप्त के बाद, इस स्तंभ पर मुगल सम्राट जहाँगीर ने भी अपने राजतिलक का उल्लेख खुदवाया। यह स्तंभ इतिहास के विभिन्न कालों में महत्वपूर्ण शासकों द्वारा इस्तेमाल किया गया, जिससे इसकी ऐतिहासिक महत्ता और बढ़ गई है।

समुद्रगुप्त के विजय अभियान

प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त की विजय यात्रा का विस्तृत विवरण है। उनके द्वारा पराजित किए गए राज्यों और शासकों में नेपाल, असम, बंगाल, और पंजाब के क्षेत्र शामिल थे। उन्होंने दक्षिण के राज्यों में भी अपनी विजय पताका फहराई और पल्लव शासकों को पराजित किया।

विजय अभियानपराजित राज्यमुख्य शासक
उत्तर भारतगंगा-यमुना दोआबनागसेन, अच्युत
दक्षिण भारतपल्लव राज्यमहेन्द्र, व्याघ्रराज
अन्य प्रदेशनेपाल, असम, पंजाबस्थानीय शासक

प्रशस्ति में समुद्रगुप्त का व्यक्तित्व

प्रशस्ति के अनुसार, समुद्रगुप्त को महान योद्धा और विद्वान बताया गया है। उन्हें संगीत क्षेत्र में नारद और तुम्बुरु के समान बताया गया है। यह भी कहा गया है कि समुद्रगुप्त को विद्वानों से विशेष प्रेम था और वह कविता और साहित्य का संरक्षक था।

प्रशासनिक व्यवस्था

प्रयाग प्रशस्ति से गुप्तकालीन प्रशासनिक व्यवस्था की जानकारी मिलती है। हरिषेण को इस प्रशस्ति में ‘संधिविग्रहिक’ (समझौता करने वाला), ‘कुमारामात्य’ (मुख्य मंत्री), और ‘महादण्डनायक’ (प्रधान न्यायाधीश) की उपाधियाँ दी गई थीं। समुद्रगुप्त के शासनकाल में उनके अधीनस्थ राज्यों के शासकों को सामंत कहा जाता था, जो उनकी ओर से प्रशासन चलाते थे।

प्रशासनिक पदविवरण
कुमारामात्यमुख्य मंत्री
महादण्डनायकन्यायाधीश
संधिविग्रहिकशांति और युद्ध का निर्णय करने वाला अधिकारी

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्रश्न 1: प्रयाग प्रशस्ति कब और किसके द्वारा रचित की गई थी? उत्तर: प्रयाग प्रशस्ति सम्राट समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण द्वारा 4वीं शताब्दी में रचित की गई थी।

प्रश्न 2: प्रयाग प्रशस्ति किस स्तंभ पर खुदी हुई है? उत्तर: प्रयाग प्रशस्ति प्रयागराज में स्थित अशोक स्तंभ पर खुदी हुई है, जिसे कौशाम्बी से लाकर समुद्रगुप्त ने वहां स्थापित किया था।

प्रश्न 3: प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त की कौन-कौन सी विजय यात्राओं का वर्णन है? उत्तर: प्रशस्ति में समुद्रगुप्त की उत्तर भारत, दक्षिण भारत, और सीमावर्ती क्षेत्रों में की गई विजय यात्राओं का वर्णन है, जिसमें उन्होंने 9 प्रमुख शासकों को पराजित किया।

प्रश्न 4: प्रयाग प्रशस्ति का ऐतिहासिक महत्व क्या है? उत्तर: प्रयाग प्रशस्ति से गुप्तकालीन प्रशासन, समुद्रगुप्त के व्यक्तित्व, विजय अभियान और उनके साम्राज्य की राजनीतिक स्थिति का विवरण प्राप्त होता है, जिससे यह अभिलेख भारतीय इतिहास में अद्वितीय है।

प्रयाग प्रशस्ति भारतीय इतिहास का एक अनमोल दस्तावेज है, जो समुद्रगुप्त के सामरिक और सांस्कृतिक योगदान का साक्ष्य है। इसे समझना और अध्ययन करना हमें उस युग के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य की गहरी जानकारी देता है।