कांचीपुरम, तमिलनाडु का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जो अपनी प्राचीनता और धार्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है। यहां स्थित कैलाशनाथ मंदिर न केवल कांचीपुरम, बल्कि पूरे दक्षिण भारत का एक ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर स्थल है। इस मंदिर का इतिहास, वास्तुकला, और धार्मिक महत्त्व इसे एक अद्वितीय स्थल बनाते हैं। कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण पल्लव साम्राज्य के समय हुआ था और यह शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। आइए इस अद्भुत मंदिर के बारे में विस्तार से जानते हैं।
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कैलाशनाथ मंदिर का इतिहास
कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण लगभग 700 ईस्वी में हुआ था, जब पल्लव शासक नारसिंहवर्मन द्वितीय ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। यह मंदिर पल्लव वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। पल्लव साम्राज्य ने इस मंदिर को एक संरचनात्मक मंदिर के रूप में विकसित किया, जबकि पहले के मंदिरों को या तो लकड़ी से बनाया जाता था या चट्टानों में काटकर बनाया जाता था। यह मंदिर कांचीपुरम में शिव के प्रमुख मंदिरों में से एक है और यहां भगवान शिव की पूजा की जाती है। पल्लव काल में ही इस मंदिर का विस्तार किया गया और महेन्द्रवर्मन तृतीय ने इसकी सजावट और ऊपरी संरचना को पूरा किया।
कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण मुख्य रूप से शिव पूजा के लिए किया गया था, लेकिन इसमें वैष्णव धर्म और शक्ति पूजा से संबंधित कई चित्रण भी मिलते हैं। इसे दक्षिण भारत में पल्लव काल के वास्तुकला के रूप में देखा जाता है, जो न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
वास्तुकला
कैलाशनाथ मंदिर की वास्तुकला पल्लव शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मंदिर पत्थर से बना हुआ है, जो इसकी स्थिरता और भव्यता को दर्शाता है। मंदिर का केंद्रीय भाग ‘गर्भगृह’ है, जहां भगवान शिव की 16-कोण वाली शिवलिंग प्रतिष्ठित है। इसके अलावा, मंदिर के चारों ओर एक बड़ी ‘प्राकार’ (आंगन) है, जिसमें 58 छोटे-छोटे शिवालय स्थित हैं। इन छोटे मंदिरों में भगवान शिव के विभिन्न रूपों की पूजा होती है।
मंदिर की ऊपरी संरचना को ‘विमान’ कहते हैं, जो चार मंजिला है। यह pyramidal आकार का है और इसकी प्रत्येक मंजिल पर विभिन्न देवी-देवताओं के चित्रण मिलते हैं। मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत मूर्तियां उकेरी गई हैं, जो शिव के विभिन्न रूपों को दर्शाती हैं, जैसे कि उर्ध्व तांडव, उमामहेश्वर, और त्रिपुरांतक। इन मूर्तियों में शिव और पार्वती के साथ-साथ कई अन्य देवी-देवताओं का चित्रण मिलता है।
मंदिर के प्रवेश द्वार के पास ‘गोपुरम’ है, जो एक टावर के रूप में है और इस पर कई छोटे मंदिर हैं। मंदिर के मुख्य गुंबद पर भगवान शिव के रूपों के चित्रण किए गए हैं, जो इस मंदिर की भव्यता को और बढ़ाते हैं। इसके अलावा, मंदिर में कई अन्य महत्वपूर्ण संरचनाएं हैं, जैसे कि ‘महा-मंडप’ (मुख्य सभा हॉल) और ‘मुख-मंडप’ (प्रवेश हॉल)।
धार्मिक महत्व
कैलाशनाथ मंदिर न केवल वास्तुकला के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह मंदिर शिव के प्रमुख मंदिरों में से एक है, जहां हर दिन हजारों भक्त पूजा के लिए आते हैं। विशेष रूप से, महाशिवरात्रि के दिन यहां विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं, जब मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
यह मंदिर ‘स्मार्त पूजा’ की परंपरा का पालन करता है, जिसमें भगवान शिव, विष्णु, देवी, सूर्य, गणेश और कार्तिकेय की पूजा होती है। इसके अलावा, मंदिर के आस-पास स्थित अन्य मंदिरों जैसे ‘एकाम्बरेश्वर’, ‘वरदराज पेरुमल’, और ‘काचपेश्वरार’ का भी धार्मिक महत्त्व है।
कैलाशनाथ मंदिर की कला और शिल्प
कैलाशनाथ मंदिर की शिल्प कला अद्वितीय है। यहां की दीवारों पर उकेरी गई चित्रकला, जो शिव के विभिन्न रूपों को दर्शाती है, दक्षिण भारतीय मंदिरों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इन चित्रों में देवी-देवताओं के साथ-साथ शैव, वैष्णव और शाक्ति पूजा के तत्व भी शामिल हैं। इस मंदिर में एक विशेष चित्रकला शैली का प्रयोग किया गया है, जो अजंता गुफाओं की चित्रकला से मिलती-जुलती है।
मंदिर की बाहरी दीवारों पर भगवान शिव के विभिन्न रूपों जैसे कि ‘गंगाधरा’, ‘तांडवमूर्ति’, और ‘भिक्षाटन’ के चित्रण हैं। इन चित्रों को देखकर यह स्पष्ट होता है कि यह मंदिर पल्लव कला का आदर्श उदाहरण है।
परिक्रमा मार्ग और अन्य विशेषताएँ
मंदिर के अंदर एक ‘परिक्रमा मार्ग’ है, जो एक प्रतीकात्मक अर्थ रखता है। यहां भक्तों को जीवन के विभिन्न चरणों का अनुभव होता है। यह मार्ग संकुचित और संकीर्ण है, जिससे भक्तों को घुटनों के बल चलना पड़ता है। इस मार्ग के अंत में एक ‘मृत्यु द्वार’ है, जो जीवन और मृत्यु के चक्र को दर्शाता है। इस मार्ग को पार करके बाहर आने पर यह व्यक्ति के पुनर्जन्म के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
मंदिर में 58 छोटे-छोटे उप मंदिर स्थित हैं, जो भगवान शिव के विभिन्न रूपों की पूजा के लिए समर्पित हैं। इन मंदिरों में भगवान शिव के साथ-साथ देवी दुर्गा, कार्तिकेय, गणेश और अन्य देवी-देवताओं के चित्रण मिलते हैं।
निष्कर्ष
कैलाशनाथ मंदिर कांचीपुरम का एक अनमोल रत्न है, जो न केवल एक धार्मिक स्थल है बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है। पल्लव काल की वास्तुकला, शिल्प कला, और धार्मिक महत्व इसे एक अद्वितीय स्थल बनाते हैं। यह मंदिर आज भी लाखों भक्तों के लिए आस्था और विश्वास का केंद्र है।
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